मिशन क्यों ? Back to Top

परंपरागत रूप से नारियल की खेती खाद्य तेल के लिए की जाती थी। विविध औद्योगिक प्रयोगों में घटक के रूप में भी यह काम आता था। आहार रीति में हुए परिवर्तन और खाद्य एवं औद्योगिक दोनों क्षेत्रों में अन्‍य सस्‍ते खाद्य तेलों की उपलब्‍धता से इन क्षेत्रों में नारियल तेल के उपयोग में भारी गिरावट हुई। गत कुछ वर्षों से सस्‍ते वानस्‍पतिक तेलों के विशेषकर पामोलिन के भारी मात्रा में आयात से,व्यापक मूल्‍य समर्थन कार्यों के बावजूद भी नारियल तेल के भाव में भारी गिरावट हुई। मूल्‍य समर्थन योजना से भाव में अधिक वृद्धि भी नहीं हुई तथा किसानों को, जैसा समझा था,लाभकर भी नहीं रहा। इस संदर्भ में यह महसूस हुआ कि नारियल उत्‍पादों के विविधीकरण और मूल्‍य वर्धन से ही नारियल किसानों को अच्‍छी आय प्राप्‍त हो सकती है। नारियल फसल कई घातक कीट-पीड़कों और मारक रोगों जैसे जडमुर्झा, गैनोडेर्मा मुर्झा, तंजावुर मुर्झा और तटिपका आदि से ग्रस्‍त होती हैं। यह महसूस किया गया कि नारियल की उत्‍पादकता सुधारने के लिए नारियल के घातक कीटपीड़कों एवं रोगों पर नियंत्रण पाना है और इसके लिए आवश्‍यक कदम उठाने चाहिए। यही नहीं, नारियल उत्‍पादों से बेहतर मूल्‍य प्राप्‍त करने हेतु उत्‍पाद विविधीकरण को बढ़ावा देना है। यह लघु एवं सीमांत कृषकों को बेहतर आमदनी प्राप्‍त होने में सहायक होगा जो अपनी जीविका चलाने के लिए नारियल पर निर्भर करते हैं।

इस संदर्भ में नारियल उत्‍पादकों के हितों की सुरक्षा के लिए प्रधान मंत्री ने नारियल प्रौद्योगिकी मिशन शुरू करने की घोषणा की। इस मिशन को चाहिए कि मौजूदा कार्यक्रमों के बीच तालमेल बनाएँ, समस्‍याओं का निदान करें और मिशन रीति से, उचित कार्यक्रमों द्वारा कमियों को सुधारें। ऐसी उचित, पर्याप्‍त, सामयिक एवं सहयोगात्‍मक कार्यप्रणाली की ज़रूरत है जो नारियल खेती को प्रतियोगिताक्षम बनाएँ तथा कृषकों को उचित आय सुनिश्चित करने में सहायक हो।

लक्ष्य और उद्देश्य Back to Top

इस मिशन के लक्ष्‍य और उद्देश्‍य निम्‍नलिखित हैं:
  1. नारियल विकास से संबंधित अनेकानेक चालू सरकारी कार्यक्रमों में तालमेल स्थापित करना जिससे कि इन कार्यक्रमों का संपूर्ण एकीकरण हो सके।
  2. उत्‍पादन, फसलोत्‍तर प्रक्रमण और उपभोग श्रृंखला की सभी कडि़यों की ओर पर्याप्‍त, उचित, सामयिक एवं सहयोगात्‍मक रूप से ध्‍यान देने को सुनिश्चित करना।
  3. नारियल विकास के लिए सृजित मैजूदा निवेश एवं अवसंरचना से अधिकतम आर्थिक, पारिस्थितिक और सामाजिक लाभ प्राप्‍त करना।
  4. कुशल रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने के लिए ऐसे उत्‍पाद विविधीकरण एवं मूल्‍य वर्धन कार्यों को बढ़ावा देना जो कि आर्थिक रूप से वाँछनीय हो ।
  5. निदर्शन एवं सवंर्धन के सहयोगात्मक तरीके से प्रौद्योगिकियों का प्रचार-प्रसार करना जिससे कि मिशन पद्धति से कमियों का निवारण हो सके।

मिशन दृष्टिकोण Back to Top

  1. मिशन दृष्टिकोण प्रौद्योगिकी समर्थन के लिए एक दृष्टिकोण विकसित करना है जिसमें मौजूदा अंतराल को दूर करने के लिए सहक्रिया और संमिलन हो।
  2. नारियल विकास बोर्ड और अन्य संस्थानों की मौजूदा योजनाएं मौजूदा प्रतिमान के साथ जारी रहेंगी और इस तरह से संमिलन किया जाएगा कि ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज एकीकरण हासिल किए जा सके।
  3. मुद्दे जिनका मौजूदा योजनाओं में समाधान नहीं किया गया है ताकि चुनौतियों का सामना कर सके।
  4. कीटों और रोग प्रभावित बागों के प्रबंधन के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास, उत्पाद विविधीकरण और बाजार संवर्धन, इनके अभिग्रहण हेतु निदर्शन और संवर्धन से संबंधित मुद्दे।
  5. मौजूदा कार्यक्रमों में नामौजूद कडियों पर ध्यान केंद्रित करना ताकि मिशन के उद्देश्यों को प्राप्त कर सके।

राष्‍ट्रीय संचालन समिति का संघटन

  1. विशेष सचिव, कृषि एवं सहकारिता विभाग, कृषि भवन, नई दिल्‍ली- अध्‍यक्ष
  2. अध्‍यक्ष, नारियल विकास बोर्ड, कोची- सदस्‍य एवं मिशन निदेशक
  3. संयुक्‍त सचिव, खाद्य प्रक्रमण उद्योग मंत्रालय- सदस्‍य
  4. उप महानिदेशक (बागवानी), आईसीएआर- सदस्‍य कृषि भवन, नई दिल्‍ली
  5. प्रबंध निदेशक, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, गुड़गॉंव-सदस्‍य
  6. एएमए, कृषि एवं सहकारिता विभाग- सदस्‍य
  7. बागवानी आयुक्‍त, कृषि एवं सहकारिता विभाग- सचिव

परियोजना अनुमोदन समिति का संघटन

  1. अध्‍यक्ष, नारियल विकास बोर्ड- अध्‍यक्ष
  2. सचिव (बागवानी), कर्नाटक सरकार- सदस्‍य
  3. सचिव (कृषि), केरल सरकार- सदस्‍य
  4. सहायक महा निदेशक (रोपण फसलें), आईसीएआर- सदस्‍य
  5. बागवानी आयुक्‍त का प्रतिनिधि, कृषि एवं सहकारिता विभाग, भारत सरकार- सदस्‍य
  6. खाद्य प्रक्रमण उद्योग मंत्रालय का प्रतिनिधि- सदस्‍य
  7. संयुक्‍त सलाहकार, विपणन व निरीक्षण निदेशालय-सदस्‍य
  8. निदेशक, सीएफटीआरआई, मैसूर- सदस्‍य
  9. मुख्‍य महा प्रबंधक, तकनीकी सेवा विभाग, नबार्ड, मुंबई- सदस्‍य
  10. मुख्‍य महा प्रबंधक, इंडियन ओवरसीस बैंक, बेंगलूर- सदस्‍य
  11. मुख्‍य नारियल विकास अधिकारी, नारियल विकास बोर्ड, कोची- सदस्‍य

ध्यान केंद्रित क्षेत्र Back to Top

  1. अनुसंधान एवं विकास
  2. क्षमता विकास और सम्मिलित आयोजन एवं कार्यान्‍वयन
  3. बुनियादी संरचना का विकास
  4. एकीकृत कीट पीड़क का एवं रोग का प्रबंधन
  5. गुणवत्‍ता, मात्रा एवं उत्‍पादकता में सुधार
  6. उधार की प्राप्‍यता और प्रबंधन को सुगम करना
  7. सामाजिक तौर पर स्‍वीकृत और पारिस्थितिक तौर पर टिकाऊ योजनाएं जो बड़े पैमाने पर अभिग्रहण करने लायक और दीर्घकाल तक प्रभावी हो।
  8. प्राकृतिक संसाधनों के टिकाऊ प्रबंधन से गरीबी का उन्‍मूलन जो भूमि के वर्तमान उपयोग के सम्यक प्रबंधन द्वारा लक्षित है।
  9. फसलोत्‍तर प्रक्रमण, उत्‍पाद विविधीकरण और मूल्‍य वर्धन
  10. कृषि - व्‍यवसाय नारियल में
  11. लोगों को फायदों की उचित प्राप्यता तथा उचित भागीदारी जिसके लिए परियोजना के कार्यान्‍वयन के सभी स्‍तरों पर लोगों को सम्मिलित करना है, वैसे उनके लिए भोगाधिकार की उचित हिस्सेदारी प्रणाली अवश्य विकसित करनी है।

मिशन संघटक एवं कार्यक्रम Back to Top

  • कीट-पीड़कों एवं रोगग्रस्‍त नारियल बागों के प्रबंधन हेतु प्रौद्योगिकियों का विकास और अभिग्रहण
  • प्रक्रमण और उत्‍पाद विविधीकरण हेतु प्रौद्योगिकियों का विकास और अभिग्रहण
  • बाज़ार अनुसंधान और संवर्धन
  • तकनीकी समर्थन, बाह्य मूल्‍यांकन और आपातिक अपेक्षाएं

प्रौद्योगिकियों का विकास, निदर्शन एवं अभिग्रहण Back to Top

कार्यक्रम 1 - कीट-पीड़कों और रोगग्रस्‍त नारियल बागों का प्रबंधन

प्रौद्योगिकियों का विकास प्रौद्योगिकियों का निदर्शन प्रौद्योगिकियों का अंगीकरण
क. ध्यान केंद्रित क्षेत्र
  • दक्षिण केरल के आठ जिलाओं के रोगप्रकोपित बागानों से सीरोलॉजिकल/ एलिसा जॉंच के बाद जड़मुर्झा रोगमुक्‍त पेड़ों की पहचान करना और गुणवत्‍तायुक्त पौदों के उत्पादन हेतु इन पेड़ों से बीजफल एकत्रित करना;
  • एरियोफाइड बरूथी की रोकथाम हेतु कुदरती सूक्ष्मजीव विरोधी एजेंटों की पहचान करना;.
  • तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और अन्‍य क्षेत्रों में गैनोडेर्मा/तटिपका/तनास्रवण रोगों के प्रबंधन के लिए जैवकारकों का मूल्‍यांकन करना;
  • कीट-पीड़कों और रोग प्रकोप को कम करने और नारियल उत्पादन बढ़ाने के लिए जैव अवशिष्‍टों का पुन:चक्रण और जैव कारकों का उपयोग;
  • लालताड़ घुन की रोकथाम हेतु बड़े पैमाने पर फेरोमोन का संश्‍लेषण और बड़ी मात्रा में फेरोमोन का उत्पादन आदि;
  • कीट-पीड़कों और रोग प्रबंधन की कोई अन्‍य पहलू;
  • विदेश में उपलब्‍ध प्रौद्योगिकी का लागत देकर आयात किया जा सकता है;
  • सुधरी फसलन/कृषि प्रणालियों के ज़रिए;
  • पोषण एवं जल प्रबंधन सहित सुधरी खेती प्रणालियों के ज़रिए।
  • कीट-पीड़कों और रोगों के प्रबंधन हेतु सक्षम साबित हुई सभी प्रौद्योगिकियों का निदर्शन
  • कीट-पीड़कों और रोगों के प्रबंधन के लिए तथा सुधरी कृषि प्रणालियों में सक्षम साबित हुई सभी प्रौद्योगिकियों का अभिग्रहण
ख. योग्‍य संस्‍थान
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर)
  • राज्‍य कृषि विश्‍वविद्यालय(एसएयू)
  • गैर सरकारी संगठन (एनजीओ)
  • शोध कार्य करने में संक्षम किसी भी संस्‍थान
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर)
  • राज्‍य कृषि विश्‍वविद्यालय (एसएयू)
  • राज्‍य कृषि/बागवानी विभाग
  • सार्वजनिक क्षेत्र/गैर सरकारी संगठन (एनजीओ)
  • पंजीकृत सहकारी समितियॉ/निजी व्‍यक्ति/कृषक ग्रूप
  • प्रौद्योगिकियों के निदर्शन में संक्षम कोई भी संस्‍थान
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर)
  • राज्‍य कृषि विश्‍वविद्यालय (एसएयू)
  • राज्‍य कृषि/बागवानी विभाग
  • सार्वजनिक क्षेत्र/गैर सरकारी संगठनें (एनजीओ)
  • पंजीकृत सहकारी समितियॉ/निजी व्‍यक्ति/कृषक ग्रूप
  • प्रौद्योगिकियों के अभिग्रहण के लिए संक्षम कोई भी संस्‍थान

कार्यक्रम 2 - प्रक्रमण और उत्‍पाद विविधीकरण

प्रौद्योगिकियों का विकास प्रौद्योगिकियों का अर्जन प्रौद्योगिकियों का अभिग्रहण
क. ध्यान केंद्रित क्षेत्र
  • सुविधाजनक नारियल खाद्य पदार्थ, नारियल तेल आधारित दवाएँ,
  • जैव डीज़ल और ओलियो रासायनिक,
  • नारियल खोपड़ी आधारित रासायनिक पदार्थ और नारियल पानी एवं मलाई उतारे दूध से बनाए विविध पेय,
  • नारियल लकड़ी का प्रक्रमण आदि।
  • प्रयोगशाला में विकसित प्रौद्योगिकियों की तकनीकी एवं आर्थिक व्‍यवहार्यता का मूल्‍यांकन करने के लिए पायलट संयंत्र स्‍तर पर परीक्षण किया जाएगा।
  • उपयुक्त क्षेत्रों में उद्यमियों को निदर्शन एवं प्रशिक्षण द्वारा प्रौद्योगिकियों का अंतरण किया जाएगा।
  • विदेश में उपलब्‍ध किसी भी प्रौद्योगिकी का आयात किया जा सकता है।
  • प्रक्रमण एवं उत्‍पाद विविधीकरण में सक्षम साबित हुई सभी प्रौद्योगिकियॉं
  • प्रक्रमण एवं उत्‍पाद विविधीकरण में सक्षम साबित हुई सभी प्रौद्योगिकियॉं
ख. योग्‍य संस्‍थान
  • वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर)
  • रक्षा खाद्य अनुसंधान प्रयोगशाला (डीएफआरएल)
  • केन्‍द्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्‍थान (सीएफटीआरआई)
  • क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला (आरआरएल)
  • राज्‍य कृषि विश्‍वविद्यालय (एसएयू)
  • गैर सरकारी संगठन, निजी उद्यमी
  • सार्वजनिक क्षेत्र एवं अन्‍य अनुसंधान संगठन
  • अनुसंधान आयोजित करने में सक्षम किसी भी संस्‍थान
  • वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर)
  • रक्षा खाद्य अनुसंधान प्रयोगशाला (डीएफआरएल)
  • केन्‍द्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्‍थान (सीएफटीआरआई)
  • क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला (आरआरएल)
  • राज्‍य कृषि विश्‍वविद्यालय (एसएयू)
  • गैर सरकारी संगठन/पंजीकृत सहकारी समितियॉं/ निजी उद्यमी
  • सार्वजनिक क्षेत्र एवं अन्‍य अनुसंधान संगठन
  • कोई भी सक्षम संस्‍थान/संगठन
  • पंजीकृत सहकारी समितियॉं/ उद्यमी/ व्‍यक्ति
  • गैरसरकारी संगठन/ कोई भी संस्‍थान जिसमें अभिग्रहण करने की क्षमता है

कार्यक्रम 3 - बाज़ार अनुसंधान और संवर्धन

क. ध्यान केंद्रित क्षेत्र

किसी खास क्षेत्र/ राज्‍य में नारियल विकास की वर्तमान स्थिति का पुनरवलोकन

  1. नारियल के विविध पहलुओं के प्राथमिक/द्वितीय डेटा विकसित करना।
  2. प्रतिबंधों को पहचानना और उनके निवारणोपायों का सुझाव देना।
  3. नारियल के नियमित विकास हेतु अल्‍पकालिक एवं दीर्घकालिक कार्यनीतियाँ विकसित करना।
  4. आवश्यकतानसार परामर्श सेवाएँ और विशेषज्ञ सेवाएँ प्रदान करना तथा प्रयोगशालाएं आदि की स्‍थापना करना।
  5. भारत में और विदेश में नारियल उत्‍पादों के संवर्धन और उपयो‍ग से संबंधित अन्‍य सभी पहलुएं।
  6. विदेश में उपलब्‍ध प्रौद्योगिकियाँ और उनकी संभावनाएँ।
  7. उपभोक्‍ताओं की तरजीह का मूल्‍यांकन, मूल्‍य वर्धित उत्‍पादों का मूल्‍यांकन और बाज़ार रुख का विश्‍लेषण।
  8. नारियल उत्‍पादों के स्‍वास्‍थ्‍य पहलुओं पर जागरूकता अभियान।
  9. नारियल उत्‍पादों के लिए पार्लरों की स्‍थापना के लिए सहायता, मीडिया समर्थन, नारियल प्रकाशन निकालना, देश-विदेश में प्रदर्शनियों/व्‍यापार मेलाओं आदि में भाग लेने के लिए सहायता देना।
ख. योग्‍य संस्‍थान
  1. सभी सरकारी एजेंसियॉं, गैर सरकारी संगठन, पंजीकृत सहकारी समितियॉं और निजी व्‍यक्त
  2. कोई भी सक्षम संस्‍थान/संगठन

सहायता का प्रतिमानBack to Top

कार्यक्रम I - कीट-पीड़कों और रोगग्रस्‍त नारियल बागों का प्रबंधन

प्रौद्योगिकियों का विकास प्रौद्योगिकियों का निदर्शन प्रौद्योगिकियों का अभिग्रहण
  • आईसीएआर (सीपीसीआरआई)/राज्‍य कृषि विश्‍वविद्यालयों/ राज्‍य बागवानी/ कृषि विभागों और सहकारिता क्षेत्रों को परियोजना लागत का 100 प्रतिशत जो कि 50.00 लाख रुपए तक सीमित है।
  • गैर सरकारी संगठनों और अन्‍य संगठनों के लिए परियोजना लागत का 50 प्रतिशत जो कि 25.00 लाख रुपए तक सीमित है।
  • आईसीएआर (सीपीसीआरआई)/ राज्‍य कृषि विश्‍वविद्यालयों/ राज्‍य बागवानी/कृषि विभागों/अन्‍य संबंधित सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों/ पंजीकृत सहकारिता समितियों को परियोजना लागत का 100 प्रतिशत जो कि 25.00 लाख रुपए तक सीमित है।
  • निजी व्‍यक्तियों/कृषक ग्रूपों/ गैर सरकारी संगठनों, निजी कंपनियों के लिए परियोजना लागत का 50 प्रतिशत जो कि 10.00 लाख रुपए तक सीमित है।
  • प्रौद्योगिकी अभिग्रहण की लागत का 25 प्रतिशत
  • कृषक ग्रूपों/ गैर सरकारी संगठनों/ अन्‍य संगठनों के मामले में लागत का 25 प्रतिशत

कार्यक्रम II - प्रक्रमण और उत्‍पाद विविधीकरण

प्रौद्योगिकियों का विकास प्रौद्योगिकियों का अर्जन प्रौद्योगिकियों का अभिग्रहण
  • सभी सरकारी संस्‍थानों और सहकारिता समितियों के लिए परियोजना लागत का 100 प्रतिशत जो कि 75.00 लाख रुपए तक सीमित है।
  • गैर सरकारी संगठनों, निजी उद्यमियों और अन्‍य अनुसंधान संगठनों के लिए परियोजना लागत का 50 प्रतिशत जो कि 35.00 लाख रुपए तक सीमित है।
  • सभी सरकारी संस्‍थानों और सहकारिता समितियों के लिए परियोजना लागत का 100 प्रतिशत।
  • गैर सरकारी संगठनों, निजी उद्यमियों और अन्‍य संगठनों के लिए परियोजना लागत का 50 प्रतिशत ।

गैर सरकारी संगठनों, निजी उद्यमियों और अन्‍य संगठनों के लिए बैक एंडेड क्रेडिट पूंजी सब्सिडी 50 लाख रुपए से अधिक न होते हुए लागत के 25 प्रतिशत तक सीमित किया गया है ( जैसा कि अनुलग्‍नक 3 और अन्‍य शर्तों के पैराओं में वर्णित है)।

कार्यक्रम III - बाज़ार अनुसंधान और संवर्धन

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(क) बाज़ार अनुसंधान

  • सरकारी एजेंसियों एवं सहकारिता समितियों के लिए लागत का 100 प्रतिशत जो कि 25 लाख रुपए तक सीमित है।
  • निजी व्‍यक्तियों, गैर सरकारी संगठनों और अन्‍य संगठनों के लिए लागत का 50 प्रतिशत जो कि 12.50 लाख रुपए तक सीमित है।

(ख) बाज़ार संवर्धन

  • सरकारी एजेंसियों एवं सहकारिता समितियों के लिए लागत का 100 प्रतिशत जो कि 25 लाख रुपए तक सीमित है।
  • गैर सरकारी संगठनों और निजी संस्‍थानों के लिए लागत का 50 प्रतिशत जो कि 10 लाख रुपए तक सीमित है।

अन्‍य शर्तें Back to Top

  1. सब्सिडी के विमोचन हेतु प्रस्‍ताव समर्पित करना (प्रक्रमण और उत्‍पाद विविधीकरण की परियोजनाएं)
    1. ऋण देने वाले संस्‍थानों के मार्गनिर्देशों के अनुसार प्रवर्तक अपना परियाजना प्रस्ताव सीधे उस वित्‍तीय संस्‍थान को प्रस्‍तुत करेगा।
    2. वित्‍तीय संस्‍थान परियोजना का अत्‍यंत संक्षिप्‍त प्रोफाइल/फैक्ट शीट नाविबो मुख्‍यालय, कोची को मंजूरी पत्र की प्रति और सावधिक ऋण के 50 प्रतिशत का विमोचन सहित निम्‍नलिखित ब्‍योरे सूचित करते हुए प्रस्‍तुत करेगा।
      1. लाभभोगी का नाम, पता और परियोजना का स्‍थान
      2. प्रवर्तक का प्रोफाइल(रूपरेखा)
      3. संबद्ध बैंक का नाम
      4. परियोजना की प्रकृति और इसकी मुख्‍य गतिविधियाँ
      5. प्रत्येक मद का वित्‍तीय प्रक्षेपण
      6. वित्‍तपोषण के उपाय नाविबो से प्राप्त होने वाली सब्सिडी
      7. तकनीकी और वित्‍तीय व्‍यवहार्यता का संक्षिप्‍त विवरण
      8. अन्‍य संगत सूचनाएं, यदि कोई हो
       
  2. नाविबो द्वारा परियोजना मंजूर करने की और सब्सिडी विमोचित करने की कार्यविधि (प्रक्रमण और उत्‍पाद विविधीकरण की परियोजनाओं के लिए)
    1. इस योजना के अंतर्गत तकनीकी एवं वित्‍तीय रूप से व्‍यवहार्य परियोजनाओं के लिए प्रति परियोजना बैक एंडेड पूंजी निवेश सब्सिडी दी जाएगी।
    2. परियोजना अनुमोदन समिति द्वारा अनुमोदित किए अनुसार इस योजना के अंतर्गत सब्सिडी मंजूर की जाएगी और विमोचित की जाएगी।
    3. हिस्‍सेदार बैंकों/वित्‍तीय संस्‍थानों के माध्‍यम से (नाविबो या बैंक जहाँ से भी पुन:वित्‍तपोषण समर्थन प्राप्‍त हो)
    4. मंजूरी पत्र प्राप्‍त करने और ऋण के 50 प्रतिशत के विमोचन के बाद, सब्सिडी राशि का 50 प्रतिशत वित्‍तीय संस्‍थानों को संबंधित ऋणी के सब्सिडी रिसर्व निधि खाते में जमा करने हेतु अग्रिम रूप में विमोचित किया जाएगा, जो परियोजना की समाप्ति पर, बैंक से दिए गए ऋण में समायोजित किया जाएगा।
    5. परियोजना पूरी होने पर, संबंधित वित्‍तीय संस्‍थानें नाविबो को सूचित करेगा कि नाविबो के सभी मार्गदर्शी सिद्धाँतों का पालन करते हुए परियोजना पूरी हो चुकी है और प्रवर्तक की उपस्थिति में परियोजना के संयुक्त निरीक्षण करने का नाविबो से अनुरोध करेगा। परियोजना के निरीक्षण की संतोषजनक रिपोर्ट प्राप्‍त होने पर सब्सिडी का शेष 50 प्रतिशत रकम नबार्ड/बैंक/वित्‍तीय संस्‍थान/एनसीडीसी को वितरित की जाएगी।
    6. वह वित्‍तीय संस्‍थान नाविबो द्वारा विमोचित सब्सिडी के लिए नाविबो को उपयोगिता प्रमाणपत्र प्रस्‍तुत करेगा।
     
  3. ऋणी के खाते में समायोजन

    नाविबो द्वारा निजी इकाइयों के नाम पर वित्‍तीय संस्‍थानों को विमोचित सब्सिडी अलग खाते में रखी जाएगी। सब्सिडी का समायोजन अलग खाते में किया जाएगा। बैक एंडेड सब्सिडी पैटर्न में सब्सिडी का समायोजन किया जाएगा। तदनुसार,बैंक लाभभोगी से प्राप्‍त मार्जिन राशि छोड़कर पूरी परियोजना लागत जिसमें सब्सिडी राशि भी सम्मिलित है ऋण के रूप में वितरित करेगा।

     
  4. सब्सिडी राशि के लिए बैंक ब्‍याज चार्ज नहीं करेगा

    इस योजना के अधीन ऋणी को स्‍वीकार्य सब्सिडी वित्‍तपोषित करने वाले बैंकों में सब्सिडी रिसर्व निधि खाते में डाली जाएगी। बैंक द्वारा इसके लिए ब्‍याज नहीं लगाया जाएगा। इसके मद्देनज़र, ऋण के लिए ब्‍याज लगाते समय सब्सिडी राशि छोड़ी जाएगी।

     
  5. योजनाओं का नेटवर्किंग

    निर्धारित लक्ष्‍य प्राप्‍त करने के लिए, जिला प्राधिकारीगण, अन्‍य संबंद्ध राज्‍यों/संघ शासित क्षेत्रों/केन्‍द्र सरकार के संगठन, एजेंसियाँ, वित्‍तीय संस्‍थान और निजी संस्थाएँ आदि अपनी गतिविधियों/ योजनाओं के नाविबो के साथ नेटवर्किंग को प्रोत्‍साहित करेंगे।

     
  6. अध्‍ययनों/सर्वेक्षणों की दिशाएं:
    1. राज्‍यों/संघशासित क्षेत्रों/भूभागों आदि में नारियल के विकास हेतु प्रौद्योगिक-आर्थिक व्‍यवहार्यता का अध्‍ययन।
    2. बाज़ार अध्‍ययन।
    3. परियोजना का पता करना, इसकी तैयारी, कार्यान्‍वयन, अनुवीक्षण एवं मूल्‍यांकन आदि के लिए विशेषज्ञ सेवाएं।
    4. परियोजना अनुमोदन समिति द्वारा अनुमोदित किए अनुसार बहु-विषयक एवं विषय विशेष पर अध्‍ययन।
     
  7. परामर्शकारी फर्मों का एम्‍पैनलमेंट

    पैनल में शामिल परामर्शदाताओं द्वारा अध्‍ययन किया जाएगा। हर तीन साल में परामर्शकारी फर्मों का पैनल अद्यतन किया जाएगा।
    1. परामर्शकारी फर्मों के एम्‍पैनलमेंट के मानदंड
      1. परामर्शदाताओं को ऐसे कार्यों में दक्षता होनी चाहिए जो कृषि/बागवानी/फसलोत्‍तर प्रबंधन के क्षेत्रों में समान कार्यों में उनके पूर्व अनुभवों से स्पष्ट है।
      2. परामर्शदाताओं के पास अपेक्षित बुनियादी सुविधाएँ होनी चाहिए जिससे कि वे आवश्यकता के अनुसार परामर्शकारी सेवा प्रदान कर सके।
      3. परामर्शदाताओं को बागवानी, वित्‍त प्रबंधन, परियोजनाओं की तैयारी, परियोजनाओं का मूल्‍यांकन, अनुवीक्षण आदि क्षेत्रों में विशेषज्ञता एवं अनुभव होने चाहिए।
      4. उन परामर्शकारी फर्मों को वरीयता दी जाएगी, जिन्हें समान कृषि-जलवायु परिस्थितियों में अध्‍ययन करने का अनुभव हो।
      5. परामर्शकारी फर्म पंजीकृत होना चाहिए और यह बहु-विषयक एवं कम से कम 3-5 साल का अनुभव वाला हो।
      6. जहाँ किसी व्‍यक्ति की विशेषज्ञता अपेक्षित है वहाँ व्‍यक्तिगत परामर्शदता को या विषय विशेषज्ञ जैसे बागवानी/कृषि /अर्थशास्‍त्र/प्रबंधन/विधि/कार्मिक/वित्‍त/विपणन/सूचना प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञों को विशिष्‍ट कार्यों के लिए लगाया जा सकता है।
         
    2. विशिष्‍ट/बहु-विषयक अध्‍ययनों के लिए विशेषज्ञों का अंतिम चयन, उनकी विषय विशेषज्ञता के मद्देनज़र परियोजना अनुमोदन समिति द्वारा किया जाएगा।
    3. परामर्शकारी फर्मों के एम्‍पैनलमेंट के लिए कार्यविधियाँ
      1. प्रस्‍ताव आमंत्रित करने के लिए मास मीडिया द्वारा व्‍यापक प्रचार किया जाएगा।
      2. परामर्शकारी फर्मों को एम्पैनल किया जाएगा।
      3. मानदंडों के आधार पर, परियोजना अनुमोदन समिति द्वारा परामर्शकारी फर्मों का पैनल तैयार किया जाएगा।
      4. बोर्ड द्वारा बहुविषयक और विषय विशिष्ट दोनों अध्ययन कार्य कम से कम 3 से 5 वर्ष के अनुभवी, पंजीकृत संस्थाओं को और विषय विशिष्‍ट अध्‍ययन कार्य बागवानी/कृषि/अर्थशास्‍त्र/ वित्‍त/विधि/कार्मिक/सूचना प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों के व्यक्तिगत विशेषज्ञों को सौंप दिया जाएगा।
     
  8. अध्‍ययन/सर्वेक्षण कार्य सौंपने की कार्यविधि :

    परामर्शदाताओं को तकनीकी एवं वित्‍तीय पहलुओं पर अपना प्रस्‍ताव प्रस्तुत करना होगा।
    1. बोर्ड उन प्रस्‍तावों की छान-बीन करके परियोजना अनुमोदन समिति के विचारार्थ प्रस्तुत करेगा।
    2. परामर्शदाता बोर्ड द्वारा निर्धारित तारीख एवं समय पर परियोजना अनुमोदन समिति के सामने अपना प्रस्‍ताव व्‍यक्तिगत रूप से पेश करेंगे।
    3. कार्य क्षेत्र के अनुसार अध्‍ययन किया जाएगा।
    4. प्रत्येक अध्ययन कार्य पर विचार करते हुए परियोजना अनुमोदन समिति उस अध्‍ययन की अवधि तय करेगी।
    5. परियोजना अनुमोदन समिति की सिफारिश पर बोर्ड द्वारा अध्‍ययन कार्य सौंप दिया जाएगा।
    6. यदि परियोजना अनुमोदन समिति विशेषज्ञों का चयन करें तो उपर्युक्‍त कार्यविधियाँ लागू नहीं होंगी।
    7. रिपोर्ट का समर्पण ओर अनुमोदन:
     
  9. परामर्शदाताओं को मसौदा रिपोर्ट निर्धारित समय के अंतर्गत देनी चाहिए।

    परामर्शदाता परियोजना अनुमोदन समिति एवं संबंधित वित्‍तपोषण संगठनों के सामने स्‍लाइड आदि के माध्यम से भी अपना अध्‍ययन कार्य प्रस्‍तुत करेंगे।
    1. अध्‍ययन रिपोर्ट में परियोजना अनुमोदन समिति/प्रायोजक संगठन की अभ्‍युक्तियाँ भी लिखी जाएंगी।
    2. परामर्शदाता रिपोर्ट की प्रस्‍तुति के आयोजन का समन्‍वयन कार्य करेगा।
    3. परामर्शदाताओं को मसौदा रिपोर्ट की दो प्रतियाँ एवं अंतिम रिपोर्ट की 20 प्रतियाँ विधिवत् रूप से बाइंड करके कंप्‍यूटर फ्लोपी सहित प्रस्‍तुत करनी होंगी।
    4. परियोजना प्रस्‍ताव में पूरा तालमेल होना चाहिए।
    5. प्रस्‍तुत साइट पर नाविबो से सहायता प्राप्‍त परियोजना का साइनबोर्ड लगाना होगा।
    6. बिना कोई कारण बताए किसी भी शब्द/शर्त का संशोधन करने, काटने तथा नया जोड़ देने का अधिकार नाविबो में निहित होगा।
    7. विभिन्‍न शर्तों के बारे में नाविबो की व्‍याख्‍या अंतिम होगी।
    8. अध्‍ययन की भौतिक एवं वित्‍तीय प्रगति का पता करने के लिए नाविबो प्रतिनिधियों द्वारा जब चाहे जैसा चाहे अध्ययन से पूर्व एवं बाद में निरीक्षण किया जाएगा।
    9. परियोजना की चालू आर्थिक अवधि के दौरान किसी भी समय परियोजना का निरीक्षण/अनुवीक्षण करने या उससे संबंधित रिकार्डों का सत्यापन करने का अधिकार नाविबो में निहित होगा।

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TMOC Updates

SIBB-R&D keen to associate with CDB

SCMS Institute of Bioscience and Biotechnology Research & Development (SIBB-R&D), Kalamassery, Cochin has shown keen interest to be associated with the Coconut Development Board for development of coconut based products utilizing their existing infrastructure and technical competence. High quality research in biotechnology & bioscience for the promotion of Biotech Industry at National and International level are being undertaken by the Institute. Dr.C.Mohankumar, Director, Dr.Balachandran, consultant and scientists from the Institute had a preliminary discussion with Shri.T.K. Jose IAS, Chairman and other senior officials of the Board on 17.10.2011 in this regard. SIBB would be submitting projects for development of value added coconut products shortly to CDB for assistance under Technology Mission on Coconut (TMOC) programme of CDB.

Applications invited for setting up / modernizing / expanding coconut processing units

Applications are invited from prospective entrepreneurs for setting up /modernizing / expanding coconut processing units under Technology Mission on Coconut. Financial assistance @ 25% of the project cost limited to a maximum of Rs.50 lakhs is extended as credit linked back ended subsidy for setting up of coconut processing units for production of value added coconut products. Modernization and expansion of existing processing units will also be eligible for assistance. The detailed project for seeking assistance for setting up coconut processing unit should be submitted through the Financial Institution, willing to sanction a minimum of 40% of the project cost as term loan for Private entrepreneurs and 25% term loan for Co-operative societies.

Packed tender nut water, coconut water based vinegar, Desiccated coconut powder, defatted coconut powder, coconut cream, coconut milk powder, Packed and Branded coconut oil with Agmark standards, Virgin Coconut Oil (VCO), Coconut chips, coconut jaggery, snow ball tender coconut, shell powder, shell charcoal, activated carbon, shell/wood based handicrafts, coconut wood processing units, copra dryer, integrated processing units etc. and such other new and innovative coconut based products, which are backed by commercially viable technologies will be considered for granting financial assistance.

Financial assistance is also provided to manufacturers for market promotion of coconut products through brand publicity through electronic media including website, print Media, Parlours, Kiosks, Warehouse, undertaking activities like buyer-seller meet, exchange of delegations, Participation of Exhibitions/Fairs/ Melas, printing of Leaflets, Pamphlets, Brochures, Posters, display of coconut products at Air Ports/Railway Stations and erection of hoardings etc. on the basis of approved proposals . The financial assistance is 50% of the project cost limited to Rs.10 lakhs for individuals and Rs.25 lakhs to co-operative organisations on reimbursement basis.

Entrepreneurs requiring external expertise for preparation of project reports may contact the Board’s empanelled consultants, M/s. GSPU and Associates, Sasthamangalam, Thiruvananthapuram, (Phone 0471-2723427, 09349336982), Shri. Job K.T, Assistant Professor, Centre for management Development, Thycaud, Thiruvananathapuram (Phone: 91471-2320101), Shri. V.Venkitachalam, Project Consultant, Panampally Nagr, Cochin (Phone: 0484 -2319841, 9446087841), M/s. Datamation Consultants Pvt. Ltd., Hasanpur, New Delhi (Phone: 91-11-43038800, 43038802), Dr. P.M.Mathew, Director, Institute of Small Enterprises and Development, Cochin (Phone: 0484 -2809884, 2808171) and M/s. Solutions and Services in Management and Development (SSMD), Manorama Junction, Kochi (Tel/Fax -0484 – 2318383).

The project proposals completed in all respects may be sent to the Chairman, Coconut Development Board, Kerabhavan, Kochi 682 011.

Virgin coconut oil and dietary fibre technology for transfer

The Coconut Development Board and Central Food Technology Research Institute (CFTRI), Mysore have developed a technology for production of Virgin Coconut Oil and Dietary Fibre. Virgin coconut oil is made from fresh coconut meat by wet milling process (cold processing). Coconut milk is fermented and then by mechanical process, water is separated from oil. No heating or application of sunlight or dryer is done for the process. The virgin coconut oil is free from trans fatty acid, high in medium chain fats (MCFA) known as lauric acid, which is identical to special group of fats found human breast milk and also rich in vitamin-E. The technology will be transferred to entrepreneurs having a sound financial background and experience in production and marketing. Interested entrepreneurs may apply to the Board in the prescribed application form which is downloadable from the link given below. The selected entrepreneurs will be required to pay a technology transfer fee of Rs.50,000. The Board reserves the right to reject all or any of the applications received.

Guidelines for preparation of Detailed Project Report for large scale production and distribution of quality planting materials including hybrids