नाविबो
की उपलब्धियां
पिछले दो दशकों के दौरान भारतीय नारियल क्षेत्र की
प्रगति तीन स्पष्ट श्रेणियों में विभाजित की जा
सकती है। इसमें से प्रथम परंपरागत एवं
गैर-परंपरागत क्षेत्रों में अधिकाधिक भूप्रदेशों
में नारियल की खेती के विस्तार में हुई प्रगति
है। दूसरी है देश में नारियल के अधीन क्षेत्र,
उत्पादन एवं उत्पादकता में हुई वृद्धि। लेकिन
खाद्य एवं खाद्येतर दोनों क्षेत्रों में नारियल
तेल की खपत की मांग घट जाने से नारियल उद्योग की
टिकाऊ वृद्धि के लिए अन्य नवीन उत्पादों की
प्रक्रमण प्रौद्योगिकियों के विकास को मजबूर कर
दिया। तीसरी है नारियल एवं इसके उत्पादों के भाव
में उतार-चढ़ाव, गिरावट आदि की वजह से नारियल
जोतों से प्राप्त कम आय की समस्या जिसने फार्म
से प्राप्त खाद्य तेलों पर लगाए गए ऊँचा आयात
शुल्क तथा नारियल उत्पादों के प्रतिबंधित आयात
ने उच्च देशी भाव बरकरार रखने की अहम भूमिका
निभाई। चूँकि नारियल उद्योग अभी भी नारियल तेल के
विपणन पर निर्भर है, अत: अपनी पूरी क्षमता का लाभ
नहीं उठा पाया है। फिर भी अपनी प्रतियोगिताक्षमता
की अनिवार्यता महसूस करते हुए उद्योग में अब
आधुनिकीकरण, उतपाद विविधीकरण और उपोत्पाद
उपयोगिता तथा पुनर्गठन प्रक्रिया चल रहे हैं।
विभिन्न मूल्य वर्धित नारियल उत्पादों के लिए
उपभोक्ताओं की मॉंग में अभूतपूर्व वृद्धि हो रही
है, इससे देशी उद्योग में अत्यंत तेज़ी हुई है जो
इस उद्योग की वैश्विक प्रतियोगिताक्षमता को भी
बढ़ाएगी।
भारतीय
अर्थ व्यवस्था के उदारीकरण के फलस्वरूप, देशी
उद्योग ने वह प्रगति नहीं हासिल की है कि विश्व
के अन्य अग्रणी देशों जैसे फिलिप्पइन्स,
इंडोनेशिया, थाइलैंड और श्री लंका में हुई है। फिर
भी, नारियल विकास बोर्ड, केन्द्रीय रोपण फसल
अनुसंधान संस्थान, केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी
अनुसंधान संस्थान, रक्षा खद्य अनुसंधान
प्रयोगशाला, क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला,
राज्य कृषि विश्वविद्यालय आदि संगठनों के
प्रयासों के फलस्वरूप उपयुक्त प्रौद्योगिकियों
के विकास एवं प्रयोग द्वारा नारियल में मूल्य
संवर्धन को बढ़ावा मिला और खाद्य व खाद्येतर
क्षेत्र में विभिन्न नारियल उत्पादों का
आविर्भाव हुआ।
आर्थिक भूमंडलीकरण ने विविध क्षेत्रीय बाज़ारों को
विश्व बाज़ार में समाकलित किया है जिससे पूरे
विश्व एक क्षेत्र हो गया है। देश के खाद्य
बाज़ारों के उत्पादों में विश्व के नए नारियल
उत्पादों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है।
भारतीय नारियल उत्पादें विश्व भर के उपभोक्ताओं
के लिए सुलभ बनाने के लक्ष्य से उत्पाद विकास
एवं सशक्त बाज़ार एकीकरण के अनुरूप देशी बाज़ारों
में महत्वपूर्ण परिवर्तन पाए गए हैं। नारियल गरी,
नारियल पानी, छिलका , खोपड़ी एवं नारियल तना
आधारित विविध नारियल उत्पादों के निर्माण के लिए
सक्षम देशी प्रक्रमण प्रौद्योगिकियॉं अब देश में
उपलब्ध है। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत के रूप में
नारियल पेड़ की क्षमता को मान्यता प्राप्त हो
रही है।
नए
मूल्य वर्धित उत्पादों के विकास के लिए
प्रौद्योगिकियॉं विकसित करने पर नारियल विकास
बोर्ड द्वारा दी गई वरीयता का परिणाम प्राप्त हुआ
है और पिछले वर्षों में उत्पाद विविधीकरण और
उपोत्पाद उपयोगिता पर तेज़ी आ गई। देश के प्रमुख
अनुसंधान संस्थानों के माध्यम से बोर्ड द्वारा
प्रायोजित विभिन्न अनुसंधान कार्यक्रमों नारियल
क्रीम, फुहार शुष्कित नारियल दूध पाउडर, परिरक्षित
एवं डिब्बाबंद डाब पानी और नारियल पानी आधारित सिरका
के निर्माण के लिए नई प्रौद्योगिकियॉं विकसित करने
का मार्ग प्रदर्शित किया है। वर्ष 2001 में नारियल
प्रौद्योगिकी मिशन प्रारंभ करने के फलस्वरूप इन
प्रौद्योगिकियों के वाणिज्यीकरण में तेजी आ गई
है। अभी तक विकसित प्रौद्योगिकियों की सहायता से
उत्पादों के वाणिज्यिक स्तर पर उत्पादन के लिए
देश के विविध भागों में अनेक प्रक्रमण इकाइयॉं
स्थापित की हैं। बाज़ार संवर्धन और उत्पाद
संबंधी अवबोध जगाने के लिए किए गए त्वरित प्रयास
वाणिज्यीकरण की गति बढ़ा दिया है।
अब
भारत की नारियल संबंधी अर्थ व्यवस्था अच्छी
स्थिति पर है। विश्व के कुल नारियल उत्पादन में
भारत का हिस्सा 22.34 प्रतिशत है। विश्व के
नारियल व्यापार में भारत का प्रमुख स्थान है। आज
1.91 दशलक्ष हेक्टर में नारियल की उगाई की जाती
है और वार्षिक उत्पादन करीब 13000 दशलक्ष फल हैं। खोप
रा प्रक्रमण, नारियल तेल निष्कर्षण एवं कयर
निर्माण देश के परंपरागत नारिलय आधारित उद्योग
हैं। देश में नारियल का भाव नारियल तेल के भाव पर
आश्रित है। भाव में आवर्ती उतार चढ़ाव होता है।
नारियल तेल का भाव देश में तेलों और वसाओं की
समग्र आपूर्ति पर सापेक्षिक रूप से निर्भर है।
नारियल तेल के भाव में होने वाले उतार-चढ़ाव एक ही
समय नारियल के भाव को प्रभावित करते हैं। भाव में
इस प्रकार होने वाली परिवर्तनशीलता/अस्थिरता
नारियल भागों की उपेक्षा का कारण बन जाती है। यह
नारियल बागों में कीटों व रोग के आक्रमण तथा कम
उत्पादकता का करण बन जाता है। देश में भाव
स्थिरता जो नारियल तेल पर आधारित होते हैं, लाने
में किफायती नारियल आधारित कृषि प्रणाली, उत्पाद
विविधीकरण और मूल्यवर्धन को बढ़ावा देना आदि
प्रमुख भूमिका निभाती है। भारतीय नारियल उद्योग को
किफायती और विश्व स्तरीय प्रतियोगिताक्षम बनाने
के लिए पुनर्गठन एवं इंजीनियरी की आवश्यकता है।
नारियल आधारित व्यवहार्य कृषि प्रणाली, फार्म
स्तरीय प्रक्रमण और उत्पाद विकास को बढ़ावा देने
में नारियल विकास बोर्ड अहम भूमिका निभा रहा है।
मूल्य वर्धित उत्पादों के उत्पादन एवं विपणन से
वाणिज्यिक स्तर पर इसका आकर्षण बढ़ा है। इसके
अलावा इस क्षेत्र में नवीकरण कार्य प्रारंभ हुआ
है। नारियल उत्पादों के भाव में वृद्धि हुई ।
नारियल तेल और डाब के स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं
को लोकप्रिय बनाने के लक्ष्य से किए गए बाज़ार
संवर्धन उपायों का आशाजनक परिणाम प्राप्त हुआ है
जिससे नारियल तेल पर निर्भर होने की प्रवृत्ति कम
हुई है। उत्पादकता सुधार एवं अन्य उत्पादन
उपायों के ज़रिए फार्म स्तरीय आय बढ़ाने तथा
उत्पाद विविधीकरण तथा नए उत्पादों के लिए अच्छी
मांग बनाने के लिए बोर्ड द्वारा किए गए सम्मिलित
प्रयास नारियल उद्योग के स्थायी विकास के लिए
गतिशील अभियान रहा। इस प्रकार बोर्ड नारियल उद्योग
के समग्र विकास के लिए समर्थन दे रहा है।
नारियल पर अनुसंधान व विकास कार्य करने के लिए देश
में सुव्यवस्थित नेटवर्क है। देश में नारियल पर
अनुसंधान एवं विकास प्रक्रिया की खोज में राज्य
कृषि विश्वविद्यालयों, भारतीय कृषि अनुसंधान
परिषद के संस्थानों, राज्य कृषि/बागवानी विभाग,
संघशासित क्षेत्रों, संगठनों जैसे नाफेड, केरा
फेड, मार्केट फेड आदि तथा अन्य निजी संस्थानों
का योगदान सराहनीय है।